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ओम की तरंग (Om Ki Tarang)

(पहला पद)

गहरी शांति में, मैं एक ध्वनि सुनता हूं,

ओम मेरे हृदय में गूंजता है, यहीं मैं हूं।

तरंग जो समय और स्थान से परे है,

ब्रह्मांड गाता है, यही मूल आधार है।

(प्री-कोरस)

हर श्वास में, हर मंत्र में, एक कुंजी,

आत्मा को जागृत करती है, कोमलता को प्रकट करती है।

ब्रह्मांड की ध्वनि, सृजन का सार,

ओम है वह पुल, जो मन और हृदय को जोड़ता है।

(कोरस)

ओम, उत्पत्ति की ध्वनि जो गूंजती है,

शांति और मौन में, मैं खुद को पाऊं।

स्वयं के केंद्र में, रौशनी चमकती है,

ओम, वह तरंग है जो मुझे जागृत करती है।

(दूसरा पद)

प्राचीन गीतों में, सितारे गाते हैं,

ओम आत्मा में गूंजता है, अस्तित्व में हर जगह।

प्रत्येक ध्वनि की लहर, एक नया जागरण,

सत्य प्रकट होता है जब मैं संकोच छोड़ता हूं।

(पुल)

असीमित अंतरिक्ष में, ध्वनि फैलती है,

ओम है वह संबंध, ब्रह्मांड उत्तर देता है।

मन की चुप्पी में, आत्मा को जानता हूं,

ओम है वह कुंजी, जो हमें आच्छादित करता है।

(कोरस)

ओम, उत्पत्ति की ध्वनि जो गूंजती है,

शांति और मौन में, मैं खुद को पाऊं।

स्वयं के केंद्र में, रौशनी चमकती है,

ओम, वह तरंग है जो मुझे जागृत करती है।

(अंत)

और जब ओम मेरी आत्मा में गूंजेगा,

मैं ब्रह्मांड से जुड़ूंगा, देखना शुरू करूंगा।

सृजन की ध्वनि में, मैं सब कुछ हूं,

ओम, वह तरंग जो मुझे अनंत तक ले जाती है।